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Vishwas kya hai - विश्वास से क्या प्राप्त होता है
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Vishwas Kya hai? – जय मसीह की दोस्तों, भाइयों और बहनो आप सबका masihizindagi परिवार में स्वागत है, हमारा उद्देश्य है, जो आप चाहते है पाना वो आपको मिल सके,”विश्वास क्या है” ()
ये एक बहुत ही खूबसुरत टॉपिक है, और हम आशा करते है, इस लेख के द्वारा हम विश्वास की परिभाषा हम समझाने में सफल रहेंगे
तोह आइये देर किस बात की आगे बढ़ते है!
विश्वास कि परिभाषा
विश्वास शब्द बड़ा ही महत्वपूर्ण है, अगर हम इसका सन्धि विच्छेद करे तो बनता है – विश्व +आस, =संसार से आस, अत: हर कोई विश्वास चाहता है, परन्तु आज के इस आधुनिक युग मे कोई किसी पर विश्वास नहीं करता और इंसान इंसान तो क्या, नास्तिक तो ईश्वर तक पर विश्वास नहीं करने का दावा करते हैं.. वो भी दंभ के साथ |
लेकिन एक मसीह विश्वासी होने के नाते आपको परमपिता परमेश्वर पर दृढ़ विश्वास होना चाहिए उसने पशु, पेड़, पक्षी सभी बनायें और विश्वास किया इंसान पर कि ये मेरी बनायी प्रकृति की रक्षा करेगा और उसे सुन्दरतम बनायेगा पर इंसान ने उस विश्वास को तोड़ दिया |
आज पशु व मनुष्य में मात्र आकृति का अंतर रह गया है वर्ना, वो ही बर्बरता, धूर्तता, छल, स्वार्थ, छीना झपटी..अपनी क्षुधापूर्ति, वो चाहे शरीर की हो या वासना की, उसी में मनुष्य भी आज जुटा रहता है|किसी को किसी पर विश्वास नहीं रहा| इसने सब को त्रस्त कर दिया है |यह विश्वास ही है जो हमें शांति , संतोष, ऊर्जा व आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है..
आज विश्वास ना करना भी एक प्रकार की बीमारी है, क्योंकि मनुष्य तो मनुष्य पर विश्वास नहीं करता तो परमेश्वर पर कैसे विश्वास करेगा, लेकिन हम और विश्वास करना अब्रहाम से सीखा सकते है, और कठिन समय मे विश्वास योग्य बने रह सकते है !
विश्वास कि आवश्यकता
परमेश्वर में विश्वास सारे मानवीय सरोकारों के प्रति सबसे अधिक मूलभूत है। एक व्यक्ति के द्वारा सृष्टिकर्ता को स्वीकार करना उसके बारे में और अधिक जानने के लिए आधारभूत है। परमेश्वर में विश्वास किए बिना, उसे प्रसन्न करना या यहाँ तक कि उसके पास आना भी असम्भव है (इब्रानियों 11:6)। लोग परमेश्वर के अस्तित्व के प्रमाण से घिरे हुए हैं, और यह केवल पाप की कठोरता के द्वारा है कि लोग उसके प्रमाण को अस्वीकार करते हैं (रोमियों 1:18-23)। परमेश्वर में अविश्वास करना मूर्खता है (भजन 14:1)।
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जीवन के दो विकल्प
पहला :
जीवन में दो विकल्प पाए जाते हैं। सबसे पहले, हमारे पास मनुष्यों के सीमित तर्क के ऊपर विश्वास करने का विकल्प है। मनुष्यों के तर्क ने विभिन्न दर्शनों, कई विश्व धर्मों और “पंथों”, विभिन्न सम्प्रदायों, और अन्य विचारों और वैश्विक दृष्टिकोणों को उत्पन्न किया है। मनुष्य के तर्क की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह बना नहीं रहता है, क्योंकि मनुष्य स्वयं स्थायी नहीं है। यह मनुष्य के सीमित ज्ञान से भी सीमित है; हम उतने बुद्धिमान नहीं हैं, जितना कि हम सोचते हैं कि हम हैं.
(1 कुरिन्थियों 1:20)। मनुष्य का तर्क स्वयं से ही आरम्भ होता है और स्वयं के ही साथ समाप्त हो जाता है। मनुष्य समय की सीमा से बाहर निकले हुए इसी में रहता है। मनुष्य जन्म लेता है, वह परिपक्वता तक बढ़ता है, अपने प्रभाव को पूरे संसार के ऊपर डालता है, और अन्ततः मर जाता है।
स्वाभाविक रूप से बोलना, यह उसके स्वयं के लिए है। तर्क के द्वारा जीवन यापन करने का विकल्प एक व्यक्ति को तराजू में जीवन यापन करने के लिए छोड़ देता है और वह सब कुछ की प्राप्ति को चाहता है। यदि एक व्यक्ति निष्पक्षता से ऐसी जीवनशैली के बारे में सोचता है, तो उसे दूसरे विकल्प के ऊपर विचार करना चाहिए।
दूसरा :
हमारे पास दूसरा विकल्प बाइबल के परमेश्वर के प्रकाशन को स्वीकार करना है। “… तू अपनी समझ का सहारा न लेना” (नीतिवचन 3:5)। नि:सन्देह, बाइबल परमेश्वर की ओर से है, को स्वीकार करने के लिए एक व्यक्ति को परमेश्वर को स्वीकार करना चाहिए। बाइबल के परमेश्वर में विश्वास तर्क के उपयोग को अस्वीकार नहीं करता है; अपितु, जब हम परमेश्वर की खोज करते हैं, तब वह हमारी आँखें खोलता है (भजन संहिता 119:18), हमारी समझ को प्रबोधित करता है (इफिसियों 1:18), और हमें ज्ञान प्रदान करता है (नीतिवचन 8)।
परमेश्वर में विश्वास करना परमेश्वर के अस्तित्व के प्रमाण के द्वारा थामे रहता है, जो कि आसानी से उपलब्ध है। सारी सृष्टि एक सृष्टिकर्ता की सच्चाई के प्रति एक चुप रहने वाली गवाह की तरह है (भजन संहिता 19:1-4)। परमेश्वर की पुस्तक, बाइबल, अपनी वैधता और ऐतिहासिक सटीकता को स्थापित करती है।
उदाहरण के लिए, मसीह के पहले आगमन से सम्बन्धित पुराने नियम की एक भविष्यद्वाणी के ऊपर विचार करें। मीका 5:2 कहता है कि मसीह का जन्म यहूदिया के बेतलेहेम में होगा। मीका ने 700 ईसा पूर्व अपनी भविष्यद्वाणी दी थी। सात शताब्दियों के पश्चात् मसीह ने कहाँ जन्म लिया था? उसका जन्म यहूदिया के बेतलेहेम में हुआ, जैसे कि मीका ने भविष्यद्वाणी की थी (लूका 2:1-20; मत्ती 2:1-12)।
बाइबल के अध्ययन से, हम पाते हैं कि परमेश्वर अनन्तकालीन, पवित्र, व्यक्तिगत्, दयालु और प्रेमी है। परमेश्वर ने अपने पुत्र, प्रभु यीशु मसीह के देहधारण के द्वारा समय की सीमा को तोड़ दिया है। परमेश्वर के प्रेम से भरी हुई गतिविधि मनुष्यों के तर्क के ऊपर अतिक्रमण नहीं करती है, अपितु मनुष्य के तर्क को ज्ञान प्रदान करती है, ताकि वह यह समझने लगे कि उसे परमेश्वर के पुत्र के माध्यम से क्षमा और अनन्त जीवन की आवश्यकता है।
निश्चित रूप से, कोई भी बाइबल के परमेश्वर को अस्वीकार कर सकता है, और कई लोग करते भी हैं। जो कुछ यीशु मसीह ने किया है, लोग उसे अस्वीकार कर सकते हैं। मसीह को अस्वीकार करना परमेश्वर को अस्वीकार करना है (यूहन्ना 10:30)।
आप इसके प्रति क्या करेंगे? क्या आप मनुष्यों के सीमित, दोषपूर्ण तर्क से अपने जीवन को यापन करेंगे? या आप अपने सृष्टिकर्ता को स्वीकार करेंगे और बाइबल में परमेश्वर के दिए हुए प्रकाशन को स्वीकार करेंगे? “अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। ऐसा करने से तेरा शरीर भला चँगा, और तेरी हड्डियाँ पुष्ट रहेंगी” (नीतिवचन 3:7-8)
इब्रानियों अध्याय 11मे विश्वास के वचन “को आपको जरूर मनन करना चाहिए, क्योंकि इसमें विश्वास के बड़े कार्यों का वर्णन किया गया है। विश्वास ही से हाबिल ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्वर के लिये चढ़ाया (वचन 4); विश्वास के ही द्वारा नूह ने एक जहाज को निर्मित किया जबकि वर्षा का अभी कुछ पता नहीं था (वचन 7); विश्वास ही के द्वारा अब्राहम ने आज्ञा मानकर अपने घर को छोड़ दिया और ऐसे स्थान की ओर चल दिया, जिसके बारे में वह कुछ नहीं जानता था, तब उसने स्वेच्छा से अपने एकलौते पुत्र को बलिदान के लिए दे दिया (वचन 8-10, 17);
विश्वास ही के द्वारा मूसा मिस्र में से इस्राएल की सन्तान को निकाल ले आया (वचन 23-29); विश्वास ही के द्वारा राहाब ने इस्राएलियों के भेदियों को ग्रहण किया और अपने जीवन को बचा लिया (वचन 31)। विश्वास के और भी बहुत से उदाहरणो का उल्लेख किया गया है “इन्होंने विश्वास ही के द्वारा राज्य जीते; धर्म के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ प्राप्त की, सिंहों के मुँह बन्द किए। आग ही ज्वाला को ठण्डा किया; तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवन्त हुए; लड़ाई में वीर निकले; विदेशियों की फौजों को मार भगाया” (वचन 33-34)। स्पष्ट है कि विश्वास के अस्तित्व को कार्य के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
विश्वास मसीह जीवन कि नीव है
यीशु मे विश्वास दिखाने के बिना हमारे पास उसके पास आने के लिए और कोई रास्ता नहीं है। हम विश्वास के द्वारा परमेश्वर के अस्थित्व में विश्वास करते हैं। अधिकांश लोगों में एक अस्पष्ट, असहमतिपूर्ण धारणा है कि परमेश्वर कौन हैं, परन्तु उनके जीवन में उस के लिए आवश्यक श्रद्धा की कमी है, यदि परमेश्वर को सर्वोच्च स्थान दिया जाए।
इन लोगों में सच्चे विश्वास की कमी है, जो परमेश्वर के साथ एक अनन्तकालीन सम्बन्ध को बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है, जो उसने प्रेम करता है। विश्वास हमें कई बार विफल कर सकता है, परन्तु क्योंकि यह परमेश्वर की ओर से उसकी सन्तान को दिया गया वरदान है, इसलिए वह परीक्षाओं और परख के समय में आवश्यक विश्वास को प्रदान करता है कि हम यह प्रमाणित कर सकें कि हमारा विश्वास वास्तविक है और इसे और सामर्थी बना सकें।
इसलिये ही याकूब हमें “पवित्र आनन्द” के ऊपर विचार करने के लिए कहता है, क्योंकि हमारे विश्वास के परखे जाने से धैर्य उत्पन्न होता है और यह हमें परिपक्व बनाते हुए, उस प्रमाण को प्रगट करता है कि हमारा विश्वास वास्तविक है (याकूब 1:2-4)।
आशा करता हु, विश्वास क्या है? (Vishwas kya hai aur uski pribhasa kya hai) इसके बारे में जानकर बड़ी आशीष मिली होंगी, अपने अनुभव को जरूर साझा करिये निचे comment में लिखकर और एक दूसरे से इसको शेयर करे!
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Hallelujah ❤️…. परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ की आज विशवास के बारे मे और बहुत कुछ सीख पाया हूँ.