Noah Story in Hindi - नूह की कहानी

Noah Story in Hindi - नूह की कहानी ​

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नूह की कहानी (noah story in hindi) को पड़ने के लिए आप सभी का  masihizindagi  परिवार में स्वागत है, इससे पहले की हम आगे बड़े आशा करता हु की खुदावंद में आप सभी सही सलामत है, हमारे प्रभु येशु मसीह हर एक उन इच्छाओ जो परमेश्वर विरोध में ना हो, और न ही किसी की हानि के लिए हो, उन सभी कामनाओ को परमेश्वर पूरी करे!

आज हम बहुत ही रोचक कहानी को जानेंगे, जिसका जिक्र आप उत्पत्ति की किताब में पाएंगे, जिसे पढ़कर आप जरूर बहुत कुछ सिखने पाएंगे, और यदि आपको ये नूह की कहानी ( noah story in hindi) अच्छी लगे तोह इसे आप जरूर आपने मित्रो के साथ साझा करे! तोह आइये देर किस बात की!

उत्पत्ति से शुरुवात

हम सबसे पहली बार उत्पत्ति अध्याय 5 में नूह के बारे में सुनते हैं, जो कि “आदम की वंशावली यह है” के वाक्यांश से आरम्भ होता है। यह उत्पत्ति में एक निरन्तर आते रहने वाला वाक्यांश है, और अध्याय 5 शेत की धर्मी वंशावली का वर्णन है, जो कि कैन की सांसारिक रेखा के विपरीत है (उत्पत्ति 4:17-24)। वंशावली में किसी तरह का कोई विच्छेद न होने का अनुमान लगाते हुए, नूह आदम की दसवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है।

नूह की वंशावली के वृतान्त में हम ऐसा पढ़ते हैं कि, “जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, तब उससे एक पुत्र का जन्म हुआ। उसने यह कहकर उसका नाम नूह रखा, ‘यहोवा ने जो पृथ्वी को शाप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्रम में जो हम करते हैं, हम को शान्ति देगा’”(उत्पत्ति 5:28-29)।

आरम्भ से ही, हम देखते हैं कि नूह एक विशेष व्यक्ति बनने जा रहा है, क्योंकि वही इस वंशावली में एकमात्र ऐसा सदस्य है, जिसके नाम की व्याख्या की गई है। उसका पिता, लेमेक कहता है कि उसका पुत्र, नूह शान्ति को लाएगा (“नूह” इब्रानी शब्द “विश्राम या आराम” के लिए प्रयोग होने वाले शब्द के जैसे प्रतीत होता है)। हम शीघ्रता से उत्पत्ति 6:1-8 में सीखते हैं कि नूह किन बातों से उन्हें शान्ति देने वाला था, जहाँ हम पूरे संसार में अधर्म के बढ़ने के साथ ही पतन के निरंकुशता भरे परिणाम को देखते हैं।

परमेश्‍वर इन शब्दों के साथ मनुष्य को इंगित करता है: “यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है, वह निरन्तर बुरा ही होता है” (उत्पत्ति 6:5)। परमेश्‍वर ने “पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा – क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूँगा – क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूँ” (उत्पत्ति 6:7)। तौभी, इस स्थिति में आशा है: “परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्‍टि नूह पर बनी रही” (उत्पत्ति 6:8)। पृथ्वी पर तेजी से बढ़ रही दुष्टता के पश्‍चात् भी, वह एक ऐसा व्यक्ति है, जो इन सब से बचा रहता है – वह एक ऐसा व्यक्ति जिसके जीवन के ऊपर परमेश्‍वर के अनुग्रह का हाथ बना हुआ था।

नूह ने प्रभु परमेश्‍वर से अनुग्रह को पाया। परमेश्‍वर उनकी दुष्टता के लिए संसार के ऊपर न्याय को भेजने पर था, परन्तु उसने नूह और उसके परिवार को अपने बचाने वाले अनुग्रह को प्रदान किया।

उत्पत्ति 6:9 जल प्रलय के वृतान्त के आरम्भ का प्रतीक है, और यही वह स्थान है, जहाँ से हम नूह के जीवन के बारे में सबसे अधिक सीखते हैं। हम सीखते हैं कि नूह एक धर्मी व्यक्ति था, जो अपनी पीढ़ी के लोगों में निर्दोष था, और यह कि वह परमेश्‍वर के साथ चलता था।

नूह के जीवन के इस वर्णन में आत्मिकता की प्रगति को लगभग कोई भी देख सकता है। नूह को धर्मी कहने के द्वारा, हम जानते हैं कि वह परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करने वाला था (उसके समय जितना अधिक वह इन्हें समझने के योग्य था और जितना अधिक अच्छी तरह से उसने इन्हें समझा था)।

वह उसके समय की पीढ़ी में दोष रहित रहते हुए, उसके दिनों के लोगों के मध्य धर्मी के रूप में खड़ा हुआ मिलता है। जब लोग लम्पट जीवन में व्यस्त थे, तब नूह एक आदर्शमयी जीवन को व्यतीत कर रहा था। अन्त में, नूह परमेश्‍वर के साथ चला, जो उसे उसके दादा हनोक के तुल्य रख देता है (उत्पत्ति 5:24); इसका तात्पर्य न केवल एक आज्ञाकारी जीवन से है, अपितु एक ऐसे जीवन से जिसका परमेश्‍वर के साथ एक जीवन्त और घनिष्ठ सम्बन्ध है।

हम देखते हैं कि नूह के आज्ञाकारी जीवन को उसकी अपनी इच्छा के पीछे चले बिना परमेश्‍वर की आज्ञाओं को जहाज के बनाए जाने के सम्बन्ध में पालन करने की इच्छा के द्वारा प्रदर्शित किया गया है (उत्पत्ति 6:22; 7:5, 9; 8:18)। ध्यान दीजिए कि नूह और उसकी पीढ़ी ने इससे पहले कभी वर्षा को नहीं देखा था, तौभी परमेश्‍वर नूह से कहता है कि वह एक ऐसे बड़े समुद्री जहाज का निर्माण करे, जिस पर पानी का कोई प्रभाव न पड़े।

नूह का परमेश्‍वर के ऊपर इतना अधिक भरोसा था कि उसने उसकी आज्ञा का पालन तुरन्त किया। नूह का जीवन दोषरहित प्रदर्शित किया गया है, क्योंकि वह परमेश्‍वर के आते हुए क्रोध के दिन के प्रकाश में प्रभु की आज्ञा का पालन करता है। प्रेरित पतरस हमें बताता है कि नूह “धर्म का प्रचारक” था (2 पतरस 2:5), और इब्रानियों के पत्र के लेखक का कहना है कि उसने अपनी धार्मिकता भरी गतिविधियों के द्वारा “संसार को दोषी ठहराया” (इब्रानियों 11:7)।

आने वाले न्याय की देरी के समय में भी, नूह ने विश्‍वासयोग्यता के साथ प्रभु परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन किया। जैसा कि परमेश्‍वर के साथ उसके चलने में प्रमाणित होता, जल प्रलय के पश्‍चात्, नूह ने एक वेदी बनाई और परमेश्‍वर को बलिदान चढ़ाए (उत्पत्ति 8:20)। नूह के जीवन में आराधना एक केन्द्रीय भाग थी।

जल प्रलय के वृतान्त और उत्पत्ति 9:20-27 में वर्णित दाखमधु पीकर मतवाला हो जाने के वर्णन के अतिरिक्त, हम नूह के जीवन के बारे में अधिक नहीं जानते हैं। निश्‍चित रूप से, मतवाली अवस्था नूह के जीवन में अनुचित्त कार्य का एकमात्र उदाहरण नहीं था। हम सभों की तरह, नूह एक पापी स्वभाव के साथ जन्मा था। कनानियों और इस्राएलियों के मध्य पाई जाने वाली शत्रुता को समझाने के लिए उसके मतवालेपन के वृतान्त को इस कहानी में सम्मिलित किया गया था।

इस घटना के होने पर भी, हम देखते हैं कि नूह को परमेश्‍वर के लोगों के इतिहास में धर्मी लोगों में से एक उल्लेखनीय व्यक्ति के रूप में सम्मानित किया गया है। यहेजकेल अध्याय 14 में दो बार, परमेश्‍वर ने भविष्यद्वक्ता के माध्यम से कहा है कि भले ही नूह, दानिय्येल, और अय्यूब भी इस स्थान में क्यों न आ जाएँ, परमेश्‍वर लोगों को न्याय से नहीं छोड़ेगा।

वह धर्मी लोगों (दानिय्येल और अय्यूब) के समूह में पाया जाता है। हम यह भी जानते हैं कि नूह को इब्रानियों 11 में विश्‍वास का उदाहरण देने के लिए सम्मिलित किया गया है, यह एक और संकेत है कि नूह की विश्‍वासयोग्यता को एक आदर्श माना जाता था और यह कि उसका इस तरह का विश्‍वास था, जो कि परमेश्‍वर को प्रसन्न करता है (इब्रानियों 11:6)।

इतना कुछ कहने के पश्‍चात्, हम नूह के जीवन से क्या सीख सकते हैं? व्यावहारिक रूप से, नूह विश्‍वास के जीवन का एक उदाहरण है। इब्रानियों 11:7 नूह के बारे में ऐसे कहता है कि, “विश्‍वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पाकर भक्‍ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ जो विश्‍वास से होता है।”

नूह को किसी कार्य को करने से पहले परमेश्‍वर की “जाँच” करने की आवश्यकता नहीं थी; परमेश्‍वर ने आज्ञा दी, और उसने आज्ञा का पालन किया। यही नूह के जीवन की विशेषता थी। नूह शेत की धर्मी वंशावली का भाग था, जिसके बारे में कहा जाता है कि, “उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे” (उत्पत्ति 4:26)। नूह परमेश्‍वर के प्रति पीढ़ियों में चलने वाली आज्ञाकारिता और विश्‍वासयोग्यता का परिणाम था।

यदि हमें नूह के जीवन को अपने जीवन के लिए आदर्श बनाना है, तो ऐसा करने के लिए इस नियम ”धर्मी पुरूष, और अपने समय के लोगों में खरा” से अधिक उत्तम और कोई नियम नहीं हो सकता है। दूसरे शब्दों में, परमेश्‍वर के साथ खराई में रहें, दूसरों के साथ खराई में रहें, और परमेश्‍वर के साथ एक आदर से भरा हुआ और आराधना वाला सम्बन्ध हो। आप यहाँ पर यीशु के गूँजते हुए शब्दों को सुन सकते हैं, जब वह उस न्यायी को सबसे बड़ी आज्ञा के बारे में किए गए प्रश्‍न का उत्तर देता है (मत्ती 22:37-39)।

धर्मवैज्ञानिक रूप से कहना, हम नूह के जीवन से और भी कुछ शिक्षाओं को प्राप्त कर सकते हैं। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, नूह का जीवन हमें इस शाश्‍वत सत्य को दिखाता है कि हम विश्‍वास के द्वारा अनुग्रह से बचाए जाते हैं (इफिसियों 2:8)। नूह एक आदर्शमयी व्यक्ति नहीं था, क्योंकि वह किसी भी रीति से पाप में पतित अपने स्वभाव से छुटकारा पाने में सक्षम नहीं था।

परमेश्‍वर का अनुग्रह उसके ऊपर था, जिससे बिना नूह जल प्रलय के समय में अन्य सभी दुष्ट पापियों के साथ नष्ट हो गया होता। नूह साथ ही एक ऐसा मुख्य उदाहरण है कि परमेश्‍वर उसके चुने हुओं को बचाता है।

हम देखते हैं कि परमेश्‍वर आने वाले न्याय के विषय में धैर्यवान था, जब नूह जहाज का निर्माण कर रहा होता है (1 पतरस 3:20; 2 पतरस 2:5)। परमेश्‍वर जानता है कि कैसे उसके भक्तों को परीक्षाओं से बचाया जाए। यह सच्चाई स्पष्ट रूप से 2 पतरस 3:8-9 में बताई गई है, क्योंकि हम सीखते हैं कि प्रभु अन्तिम न्याय को तब तक स्थगित रखेगा, जब तक कि सभी चुने हुए पश्‍चाताप नहीं कर लेते हैं।

अन्त में, नूह का जीवन एक स्मृति के रूप में कार्य करता है कि पाप का न्याय किया जाएगा। प्रभु का दिन आएगा (2 पतरस 3:10)। यीशु नूह के जीवन का उपयोग इस बात के पूर्वाभास के रूप में करता है कि जब अन्तिम न्याय के दिन मनुष्य का पुत्र वापस आएगा तो यह कैसा होगा (मत्ती 24:37-38; लूका 17:26-27)। इस तरह से, हमें नूह के उदाहरण का अनुसरण करने और “धर्म का प्रचारक” बनने और पौलुस के शब्दों को ध्यान में रखने की आवश्यकता है: “इसलिये, हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्‍वर हमारे द्वारा विनती कर रहा है।

हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं कि परमेश्‍वर के साथ मेलमिलाप कर लो” (2 कुरिन्थियों 5:20)। नूह की तरह ही, हम इन अन्तिम दिनों में मसीह के राजदूत हैं। परमेश्‍वर का न्याय आ रहा है, परन्तु वह यीशु मसीह के माध्यम से मेल-मिलाप को प्रदान करता है। हमें दूसरों तक मेल-मिलाप के इस सन्देश को ले जाना चाहिए।

आशा करता हु, नूह की कहानी (noah story in hindi) के बारे में जानकर बड़ी आशीष मिली होंगी, अपने अनुभव को जरूर साझा करिये निचे comment में लिखकर और एक दूसरे से इसको शेयर करे!

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